अल्लाहु अकबर: कायनात की वुसअतों में खालिक की अज़मत की तलाश

मैं अक्सर इसका ज़िक्र करता हूँ कि अगर आप मुसलमान हैं और आप एस्ट्रोनॉमी के बारे में नहीं जानते, तो आप “अल्लाहु अकबर” का सही मतलब नहीं जान सकते। आप एस्ट्रोनॉमी के बिना दुनिया की तमाम किताबें भी पढ़ लें, तो कायनात के मालिक के बारे में भी पूरी तरह से नहीं जान सकते, क्योंकि सितारों से नीचे की कायनात का 0.00000000000000001% भी नहीं है। तो आप कैसे इस शब्द का सही “मतलब” समझ सकते हैं? हम जब बार-बार हर नमाज़ में “अल्लाहु अकबर” कहते हैं, तो क्या उसका सही मतलब भी समझते हैं? हरगिज़ नहीं, क्योंकि “अल्लाहु अकबर” का सही मतलब आपको सिर्फ़ फ़लकीयात (एस्ट्रोनॉमी) ही सिखा सकती है।

इसलिए मैं समझता हूँ कि पाकिस्तान के हर मदरसे में एक क्लास फ़लकीयात पर भी होनी चाहिए। क्योंकि एक तो फ़लकीयात बेहद दिलचस्प फ़ील्ड है, और दूसरी बात यह है कि अल्लाह तआला की बड़ाई का सही मतलब जानने के लिए फ़लकीयात का इल्म बहुत ज़रूरी है।

यह इतना दिलचस्प सब्जेक्ट है कि इसमें आप कभी जन्नत नज़ीर वादियाँ देखते हैं, तो कभी जहन्नम सिफ़त ग्रह। कभी ख़ला (अंतरिक्ष) में पानी के बड़े-बड़े “समुद्र” देखते हैं, तो कभी जलती हुई आग। कायनात में एक तरफ़ सख्त ठंड देखने को मिलती है, तो दूसरी तरफ़ आग से भी हज़ारों गुना ज्यादा जलती आग।

कायनात की “वुसअतें” देखकर इंसान के दिल में यह ख्याल आता है कि यहाँ से करोड़ों नूरी साल दूर चला जाए, तो अपनी उम्र देखकर “मायूस” हो जाता है कि साठ साल की ज़िंदगी में पाँच नूरी मिनट दूर जाना भी मुश्किल है। करोड़ों नूरी साल दूर जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

नासा वाले कायनात में लगातार “ज़िंदगी” ढूँढने में मसरूफ हैं, लेकिन अब तक ज़मीन के अलावा कहीं और ज़िंदगी नहीं मिली। अब तक कोई ऐसी वजह भी सामने नहीं आई जिसकी बिना पर यह पक्के तौर पर कहा जा सके कि “ज़िंदगी” ज़मीन के अलावा कहीं और मौजूद नहीं।

लेकिन “खालिक-ए-कायनात” ने इस बात की नफ़ी भी नहीं की। शायद इसलिए कि इंसान के अंदर का “तजस्सुस” खत्म न हो जाए और वह दुनिया में आने का मक़सद सिर्फ़ खाने-पीने, सोने और जानवरों की तरह जिंदगी गुज़ारने ही को न समझ ले। यानी खालिक खुद चाहता है कि उसकी मखलूक कायनात की वुसअतों में झाँके और इन अजीबों-ग़रीब चीज़ों को देखकर अपने खालिक तक पहुँचे। अपने बनाने वाले की बड़ाई को जाने।

शब्द “अल्लाहु अकबर” की पहचान करे। खालिक-ए-कायनात की शान और अज़मत किस कदर बुलंदो-बाला और बड़ी है, इसे समझना मुमकिन नहीं, लेकिन उसकी निशानियाँ कायनात में बिखरी हुई हैं। अगर देखा जाए, तो हसीन कायनात की सबसे बड़ी, अजीब और हैरान करने वाली तख्लीक सितारों, ग्रहों, और ब्लैक होल्स वगैरह की तख्लीक है। इंसान जैसे-जैसे इस तख्लीक और कायनात को समझने के लिए आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उस पर यह वाज़ेह हो रहा है कि जो कुछ उसने देखा, समझा, और परखा है, वह तो कायनात का एक छोटा-सा हिस्सा भी नहीं।

एक वक़्त था, जब इंसान सूरज में अपने तसव्वुराती माबूद को ढूँढता था और सूरज को ज़मीन पर जिंदगी की ज़मानत करार देता था। लेकिन आज पूरी इंसानियत यह जानती है कि सूरज भी किसी सिस्टम की पैरवी कर रहा है। सूरज भी हमारी गैलेक्सी के मरकज़ के ताबे है। उसमें एक ब्लैक होल को फॉलो कर रहा है।

तहसीन उल्लाह खान
स्रोत: फ़ेसबुक

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