कहते हैं कि पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। सोलह आने सही है याह बात।आप अचानक किसी मोसिबात में पड़ जाते हैं तो सब से पहली मदद कहां से मिलती है ? बेशक पड़ोसियों से। नाते- रिश्तेदार तो खबर मिलने पर बाद में आते हैं लेकिन पड़ोसी फौरन हाजिर हो जाता है । इसलिए पढ़ोस का रिश्ता सब से जरूरी रिश्ता माना जाता है।
दुर्भाग्य से जीवन की आप – धापी में व्यस्त जीवन शैली के कारण हमारे पड़ोस के रिश्ते पर एक गर्द सी जमती का रही है । पड़ोसी से रोज मिलने और बतियाने कि आदत छूटती जा रही है । छुट्टियों में मिलने लगे हैं । एसे में एक दूसरे का हाल जानने और दुख दर्द बांटने की परंपरा कमजोर पड़ने लगी है ।हम अब पड़ोसी धर्म नेभाने से कतराने से लगें हैं। इसका आसार याह पड़ा है कि पड़ोसी रहते हुए भी हम कहीं न कहीं खुद को अकेला सा महसूस करने लगे हैं ।
पड़ोस का रिश्ता कमजोर पड़ने के कारण हम अपने पड़ोसियों के प्रति बहुत सारी गलतफहमियों का फायदा स्वार्थी और सामाजिक तत्वों को मिलने लगा है । नतीजा है कि हम पड़ोसी को धर्म जाति,उंच नीच और हैसियत के पैमाने पर मापने लगे हैं । इसका असर हमारी कौमी एकता पर पड़ने लगा है ।
क्या आप को नहीं लगता कि हमारा पड़ोस का रिश्ता फिर से मजबूत हो ? हम पड़ोसी के दुख दर्द और खुशी एवं गम को बांट ज़िन्दगी को खुश हाल तथा आसान बनाएं । पहले के जैसे एक दूसरे के सामाजिक,पारिवारिक और धार्मिक उत्सवों को सौहार्द पूर्वक मनाएं।
इसके लिए जरूरी है कि सब से पहले हम अपने पड़ोसी को जाने । उनके विचारों, रिती रिवाजों, परंपराओं,आस्था,खान पान और त्योहारों को समझें । यकीन मानिए ,हमारी बहुत सरी गलतफहमियां इतने भर से ही दूर हो जाएंगी।
तबरेज बुखारी नदवी